कबीरदास का जीवन परिचय: कबीरदास (Kabirdas) का जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है हालाकि अधिकतर विद्वान कबीरदास जी का जन्म 1398 में काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर जी का कथन भी करता हैं| इनका पालन पोषण नीमा तथा नीरू नामक जुलाहा दंपति ने किया था कबीर के जन्म के सम्बंध मे निश्चित पता नहीं है | एक किवंदत के अनुसार किसी विधवा ब्राह्मणी ने इनको जन्म देने के पश्चात लहर तारा तालाब के निकट छोड़ दिया था |इस प्रकार कबीर को हिन्दू तथा मुसलमान दोनों के ही सस्कार मिले |(Kabirdas biography in hindi)
फोटो: | Unknown author, Public domain, via Wikimedia Commons |
नाम: | कबीरदास |
जन्म: | 1398 को काशी में |
मृत्यु: | वर्ष 1518 को मगहर में |
माता-पिता: | नीरू, नीमा |
गुरु: | स्वामी रामानंद |
पत्नी: | लोई |
बच्चे: | कामली, कमल |
भाषा: | सधुक्कड़ी, राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, एवं अवधी |
कबीर का विवाह लोई नामक स्त्री के साथ हुआ था | इनके पुत्र का नाम कमाल तथा पुत्री का नाम कमाली था | कबीर जुलाहे का काम करते थे किन्तु उनका झकाव ईश्वर – भक्ति की ओर था | उहोने रामानद का नाम सुन रखा था |
जब रामानन्द ने कबीर को शिष्य बनाने इंकार कर दिया | तो गंगा तट पर जाकर घाट की सीडियो पर लेट गए | रामानन्द गंगा स्नान करने आए तो तो अंधेरे मे उनका पर कबीर की छ्ति पर फूड गया | वे राम-राम करते हुये पीछे हट गए |
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कबीर ने उनके मुख से निकले शब्दो को गुरु मंत्र मन लिया और उन्हे अपना गुरु मान लिया |कबीर का जन्म मगहर मे हुआ था , परतू वे काशी मे रहते थे |
कबीर पड़े –लिखे नहीं थे ,लेकिन साधुओ के साथ रह कर बहुत सारा ज्ञान प्राप्त हो गया | कहते हैं मगहर मे मरने वाले को नरक मे जाना पड़ता है| इस विश्वास के खण्डन के लिए ये अंतिम समय मे मगहर चले गये | जहा इनकी 1598 मे निधन हो गया |(Kabirdas biography in hindi)
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उनके अंतिम सस्कार के लिए हिन्दू ओर मुसलमानो मे विवाद हो गया |हिन्दू उनका दाह सस्कार करना चाहते थे , लेकिन वही पर मुसलमान उनको दफनाना चाहते थे | कहा जाता है कि चादर हटाने पर वहा शव के स्थान पर फुलो का देर मिला , जिसको दोनों समप्रदाय वालों ने आपस मे बाट लिया | और दोनों समप्रदायो के सारे विवाद खतम हो गया |
काव्यगत विशेषताएं
(अ) कला पक्ष
(१) भाषा– आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी का डिटेक्टर कहां है कबीर की भाषा में विभिन्न प्रदेशों की भाषाओं को के शब्द मिलते हैं कबीर ने शब्दों को अपने अनुसार तोड़ा मरोड़ा भी है(Kabirdas biography in hindi)
कबीर की भाषा का स्वरूप साहित्यिक तो नहीं परंतु भावों को व्यक्त करने की असाधारण क्षमता उसमें है कबीर की भाषा को पंचमेल खिचड़ी साधु कड़ी इत्यादि नामों से पुकारा जाता है|
(२) छंद तथा शैली– कबीर की शैली सहज तथा स्वभाविक है उन्होंने सरल भाषा में बातें कहीं हैं जिससे लोगों की समझ में वह सरलता से आ जाती है कबीर ने अपनी कविता के लिए दोहा छंद का प्रयोग किया है उनके दोनों में मात्राएं कम अधिक मिलती है उनकी कुछ रचनाएं के पदों में भी मिलती हैं इनमें गीतिकाव्य शैली को अपनाया गया है||(Kabirdas biography in hindi)
(३) अलंकार- कबीर की कविता में अलंकार स्वभाविक नीति से आए हैं अनुप्रास रूपक उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग उनकी कविताओं में पाया जाता है|
(ब) भाव पक्ष
कला पक्ष की अपेक्षा कबीर की कविता का भाव पक्ष अत्यंत समृद्ध है कबीर की कविता के भाव पक्ष की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
(१) निर्गुण उपासना– कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक तथा ज्ञानमार्गी हैं ब्रह्म के साक्षात्कार के लिए हुए आत्मज्ञान को आवश्यक समझते हैं आत्मज्ञान की प्राप्ति गुरु की कृपा से ही हो सकती है|(Kabirdas biography in hindi)
(२) रहस्यवाद– कबीर रहस्यवादी हैं उन्होंने परमात्मा को पति तथा आत्मा को पत्नी माना है इस भौतिक संसार के पीछे व आत्मा की सत्ता के दर्शन करते हैं।
(३) समाज सुधार– कबीर धार्मिक आडंबर तथा अंधविश्वास के विरोधी हैं उन्होंने अपनी कविता में सामाजिक कुरीतियों की कठोर आलोचना की है कबीर हिंदू मुसलमानों की एकता के उपदेशक हैं वह सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन में सदाचार तथा प्रेम के समर्थक हैं।
(४) रस– कबीरदास का जी की कविता में शांत रस की ही प्रधानता है दूसरों दूसरा रस श्रृंगार है किंतु वह सर्वत्र शांत रस का सहायक बनकर ही प्रकट हुआ है।
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कबीर की रचनाएं
कबीरदास का जी की रचनाएं विजय के नाम से संकलित हैं इसमें उनकी तीन प्रकार की रचनाएं हैं।
- साखी
- सबद
- रैमनी
‘साखी’ में कबीर के साक्षात देखे हुए अनुभव हैं कबीर ने अपनी शिक्षाओं को दोहा छंद में लिखा है।
‘सबद’ में कबीर के भक्ति संबंधी विचार हैं इसकी रचना के पदों में की गई है।
‘रैमनी’ रामायणी का बिगड़ा रूप है इसकी रचना के लिए कबीर ने चौपाई छंद का प्रयोग किया है कबीर का आध्यात्मिक दर्शन रमैनी में मिलता है।
हिंदी काव्य में स्थान
कबीर भक्त तथा संत कवि हैं वह हिंदी के कवियों में अत्यंत मेधावी तथा बुद्धिमान है अंधविश्वासों तथा कुरीतियों की निर्भीक आलोचना करने वाले वे एकमात्र कवि हैं हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतिपादक महान समझने वादी मानवतावादी कवि हैं||(Kabirdas biography in hindi)
कबीरदास का जीवन परिचय कबीर या उनके काव्य के संबंध में डॉ द्वारिका प्रसाद सक्सेना ने लिखा है कबीर एक उच्च कोटि के सन बेशक थे उनका समस्त साहित्य एक जीवन मुक्त संत के गुण एवं गंभीर अनुभव का भंडार है|
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