प्राचीन भारतीय संस्कृति में धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं। Hariyali Teej भारतीय कैलेंडर में भद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है, जो कि श्रावण मास में पड़ता है। इस उत्सव का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ-साथ महिलाओं के जीवन में एक खास स्थान है।
Hariyali Teej पौराणिक महत्व
Hariyali Teej के दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करके उनसे अखंड सौभाग्य और सुख की प्राप्ति की कामना करती हैं। विशेष रूप से सुहागन महिलाएं इस उत्सव के दिन निर्जला व्रत रखती हैं, जिसका मतलब होता है कि व्रत की अवधि में वे नीर पान नहीं करतीं। इसे विशेष आत्म-नियम के रूप में माना जा सकता है, जो महिलाओं के आत्म-समर्पण और त्याग की प्रतीक होता है।
Hariyali Teej आध्यात्मिक दृष्टिकोण
Hariyali Teej के दिन सूर्य के साथ बुध की युति से बुधादित्य योग बनता है, जो कि स्वराशि में होता है। कन्या राशि में मौजूद चंद्रमा और मंगल की युति की वजह से महालक्ष्मी योग का निर्माण होता है। यह योग महिलाओं के लिए खास रूप से सौभाग्य, समृद्धि, और समानता की प्राप्ति का संकेत होता है।
उत्सव की तैयारियाँ: Hariyali Teej के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करतीं हैं और फिर व्रत का संकल्प लेतीं हैं। उन्हें पूजन सामग्री जुटानी होती है, जैसे कि फल, फूल, पत्र, और प्रसाद। व्रत के दिन महिलाएं बिना कुछ खाए रहतीं हैं और शाम को सूर्यास्त से पहले और उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करतीं हैं।
सामाजिक महत्व: Hariyali Teej का यह पावन उत्सव महिलाओं के आत्मविश्वास को मजबूती देता है और उन्हें समाज में समृद्धि और समानता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। यह विशेषकर परिवार में खुशियों का आयोजन करने का एक अवसर भी प्रदान करता है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य: वर्तमान समय में भी Hariyali Teej का महत्व अब तक बना हुआ है और यह उत्सव समाज में एकता और समानता की भावना को मजबूत करता है। महिलाएं इस दिन न केवल परंपराओं का पालन करती हैं, बल्कि इसका महत्व समाज में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका को भी प्रमोट करता है।
आत्म-प्रेरणा: Hariyali Teej का उत्सव महिलाओं को आत्म-समर्पण और परिश्रम की महत्वपूर्ण शिक्षा देता है। उन्हें निरंतरता से व्रत रखकर यह दिखाने का मौका मिलता है कि किस प्रकार से समस्याओं का सामना करते हुए भी वे संघर्ष को साहसपूर्ण तरीके से पार कर सकती हैं।
समाज में योगदान: Hariyali Teej के दिन महिलाएं एकजुट होती हैं और सामाजिक सुधार और सामाजिक सेवा के प्रति उनका समर्पण दिखाती हैं। विभिन्न सामाजिक संगठन और स्थानीय समुदाय इस दिन समाज में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से समारोह आयोजित करते हैं, जिनमें महिलाएं भाग लेती हैं।
भविष्य की स्तुति: Hariyali Teej का उत्सव आने वाले समय की सफलता और समृद्धि की प्रतीक माना जाता है। महिलाएं इसे एक तरह से भविष्य की स्तुति मानती हैं और अपने परिवार को समृद्धि और सुख की दिशा में आगे बढ़ने की कामना करती हैं।
समृद्धि और समानता की दिशा में: Hariyali Teej के उत्सव का महत्व सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि समृद्धि और समानता की दिशा में भी है। यह महिलाओं को समाज में उनकी सही मान्यता और प्रतिष्ठा के साथ अग्रसर होने की प्रेरणा देता है और उन्हें सशक्त बनाता है।
निष्कर्ष: Hariyali Teejउत्सव महिलाओं के जीवन में एक महत्वपूर्ण रोल निभाता है। यह उनकी आत्मशक्ति, समर्पण, और सौभाग्य की प्रतीक होता है। इसके साथ ही यह धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है, जो हमारे समाज को समृद्धि, समानता, और एकता की दिशा में अग्रसर करते हैं। इस प्रकार, हरियाली तीज उत्सव न केवल एक धार्मिक परंपरा का हिस्सा है, बल्कि यह महिलाओं के आत्म-समर्पण, समृद्धि, और समाज में योगदान की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण तरीका भी है। इस उत्सव के माध्यम से महिलाएं न केवल आत्म-निर्भर बनती हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में काम करती हैं। Also Read This …..