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श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा: Navratri Vrat Katha 2020

श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा हेलो दोस्तों आज हम आपको दुर्गा नवरात्रि के बारे में सब कुछ विस्तार से जानकारी देने वाले हैं इसलिए आप इस पोस्ट पर बने रहिएगा और दुर्गा नवरात्रि के बारे में सारी जानकारी प्राप्त कीजिएगा चलिए अब इस श्री नवरात्रि व्रत कथा व्रत कथा को स्टार्ट करते हैं।

नवरात्रि व्रतानुष्ठान विधि

नवरात्र का व्रत प्रायः अश्विन एवं चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि पर्यंत किया जाता है किसी-किसी के मत से यह व्रत आषाढ़ एवं माघ मास में करना भी कहा जाता है परंतु मान्यता अश्विनी एवं चैत्र मास की ही अधिक है ।

इसके व्रत को प्रातः नित्यकर्म से निवृत हो किसी देवी के मंदिर में जाकर दर्शन पूजन करना चाहिए दिनभर व्रत रहकर शाम को बंधु बांधव सहित नवरात्र व्रत की कथा श्रवण करने चाहिए कथा समाप्त के पश्चात फलाहार ग्रहण करना चाहिए इस व्रत में नमक का परित्याग करना चाहिए यदि 9 दिन तक निभा सके तो प्रतिपदा एवं अष्टमी तिथि को लवण युक्त आहार अवश्य ही त्याग दें व्रत को किसी भी स्थान में पर रहकर किया जा सकता है।

नवरात्रि व्रत कथा(Durga Navratri Vrat Katha)

नवरात्रि व्रत कथा #1 अनाथ ब्राह्मण और सुमति की कथा

एक बार गुरुदेव बृहस्पति ने ब्रह्मा जी से प्रश्न पूछा हे भगवन् नवरात्र व्रत करने की विधि एवं उसके फल को मैं आपके मुंह से सुनना चाहता हूं बृहस्पति के प्रश्न सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा है हे बृहस्पति पूर्व काल में जिसने इस व्रत को किया था उसका पुनीत वृतांत मैं तुम्हें सुनाता हूं

उन्होंने कहा मनोहर नामक नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था वह भगवती दुर्गा का परम भक्त था उसके सुमति नाम की एक रूपवती कन्या थी वह पिता के घर में दिनोंदिन वृद्धि को प्राप्त होने लगी जब वह कुछ समझदार हो गई।

तो वह भी अपने पिता के साथ देवी पूजा में प्रतिदिन भाग लेने लगी एक दिन वह अपनी सहेलियों के साथ खेलती रहकर पूजा में सम्मिलित नहीं हुई उसके इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर उसके पिता ने बहुत डांटा फटकारा और कहा कि मैं तेरा विवाह किसी कुष्ठी और निर्धन व्यक्ति के साथ कर दूंगा पिता की बात से विचलित ना हो होकर उस कन्या ने निर्भय पूर्वक उत्तर दिया पिताजी जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे वह फल भी वैसा ही मिलता है ।

अतः अपने भाग्य और कर्म में मेरा दृढ़ विश्वास है पुत्री का प्रचुर सुनकर उसका पिता अत्यंत कुपित हुआ और उसने अपने निश्चय के अनुसार पुत्री का विवाह कुष्ठी निर्धन मनुष्य के साथ कर दिया उसकी कन्या ने कोई प्रतिवाद नहीं किया और प्रसन्नता पूर्वक अपने पति के साथ वह वन में चली गई।

उसके पूर्व जन्म के संचित पुण्य के प्रभाव से उसे देवी दुर्गा प्रसन्न होकर प्रकट हुई और बोली है ब्राह्मणी मैं तेरे ऊपर प्रसन्न हूं तू अपनी इच्छा अनुसार वरदान मांग ले देवी की बात सुनकर ब्राह्मणी ने कहा हे देवी आप अगर इस असहाय पर पसंद है तो मुझे अपना परिचय बताने की कृपा करें देवी ने कहा मैं ही आदिशक्ति ब्राह्मणी सरस्वती और दुर्गा नाम से विख्यात हूं मैं अपने भक्तों पर सदैव कृपा दृष्टि बनाए रखती हूं।

दोस्तों अब हम आगे आपको श्री दुर्गा नवरात्र व्रत कथा के आगे की कहानी को समझाते हैं।

देवी द्वारा पूर्व जन्म के वृतांत का वर्णन

देवी ने कहा तू पूर्व जन्म में निषाद की पत्नी थी और अत्यंत पतिव्रता थी एक दिन तेरे निषाद पति ने चोरी की फल स्वरुप तू दोनों दंपतियों को कैद कर कारागार में डाल दिया गया वहां पर तुम दोनों को भोजन भी नहीं दिया गया था उस समय मेरे व्रत का नवरात्र काल चल रहा था इस प्रकार अनजाने में ही तुम्हारा नवरात्र व्रत पूर्ण हो गया। उसी व्रत के कारण मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं

देवी की बात सुनकर ब्राह्मणी बोली है भगवत दुर्गे मैं आपको बारंबार प्रणाम करती हूं आप मेरे पति को रोग मुक्त कर दीजिए।

देवी ने कहा तुम अपने नवरात्र व्रत के 1 दिन के फल को अर्पण कर दो तो तेरा पति निरोग हो जाएगा ब्राह्मणी द्वारा व्रत फल संकल्प करते ही उसका पति सुंदर शरीर वाला हो गया। तब ब्राह्मणी ने अपने पिता के बारे में सारा वृत्तांत सुनाया देवी ने कहा कि तुम्हें तेजस्वी बालक प्राप्त होगा जो तुम्हारे हर कष्टों को हर लेगा।

नवरात्र में अध्रर्यदान विधि

देवी ने उस ब्राह्मणी से कहा कि नवरात्र में व्रत रहकर मेरी पूजा करने के पश्चात अध्रर्यदान अवश्य करना चाहिए ,बिजौरे के पुष्प से अध्रर्यदान करने से रूप की प्राप्ति दाख से कार्य की सिद्धि ,केले से आभूषण की प्राप्ति, जायफल से कीर्ति एवं आंवले से सुख-समृद्धि की उपलब्धि होती है।

अर्ध दान के उपरांत हवन करना चाहिए हवन की सामग्री में घी, शक्कर ,शहद, गेहूं, नारियल, तेल या अंगूर और कदंब लेना चाहिए गेहूं के साथ हवन करने से धन की प्राप्ति ,खीर में मिलाकर चंपा के फूलों से हवन करें तो धन और पत्तों से तेज की प्राप्ति, आंवलों द्वारा हवन करने से कीर्ति की वृद्धि एवं केले द्वारा पुत्र की प्राप्ति होती है।

आपने क्या सीखा(Conclusion)

दोस्तों आपको आज इस लेख में पता चल गया होगा दुर्गा नवरात्र व्रत कथा के बारे में सब कुछ बता दिया है अगर आपको यह लेख पसंद आया होगा तो शेयर कीजिए और सब्सक्राइब करना मत भूलिएगा जिससे आपको हमारी पोस्ट की नई -नई अपडेट मिलती रहे ।तब तक के लिए धन्यवाद।

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