
स्वदेश प्रेम पर छोटा निबंध:-हम उन वीरों के बच्चे हैं,जो धुन के पक्के सच्चे थे, हम उनका मान बढायेंगे,हम जग में नाम कमायेंगे। रोको मत, आगे बढ़ने दो, आजादी के दीवाने हैं, हम मातृभूमि की सेवा में,अपना सर्वस्व लगायेंगे।
अपना देश तो स्वर्ग से भी बढ़कर है जिस भूमि की धूल में हम लोटपोट कर बड़े हुए हैं जिनके अन्य से हमारे शरीर का भरण पोषण हुआ है जिसके जल और वायु ने हमें जीवन प्रदान किया है
उस स्वदेश को क्या कभी भुलाया जा सकता है स्वदेश की रक्षा हेतु हमें अपना जीवन भी अर्पण कर देना चाहिए यदि हम उस पर सर्वस्व न्योछावर करना चाहते हैं तो देश से प्रेम रखें देश को सहायता प्रदान करें स्वदेश प्रेम होना स्वाभाविक ही है
मनुष्य में ही क्या वह पशु पक्षियों में भी यह प्रेम आवश्यक है यहां तक कि पेड़ पौधों में भी अपने स्थान से प्रेम होता है पक्षी दिन भर आकाश में उड़ते हैं परंतु संध्या होते ही अपने घोसले में वापस आ जाते हैं पशु कितना ही बाहर घूमने परंतु आनंद उसे अपने निवास स्थान पर प्राप्त होता है
वह अत्यंत कहां वही जो पेड़ पौधे जिस स्थान पर विकसित होते हैं उन्हें यह दूसरे स्थान पर लगाया जाए तो वह सूख जाएंगे अंगूर मरुस्थल में पैदा नहीं किए जा सकते ऊटो को नंदन वन में रहने को दिया जाए तो भी वह अपने प्यारे मरुस्थल को नहीं देख सकते हैं

देशप्रेम और देश सेवा में घनिष्ठ संबंध है बिना देश सेवा के देश प्रेम धन है अपने देश को प्रेम करने का तात्पर्य है कि हम अपने छोटे छोटे स्वार्थों को देश के लिए त्याग दें देश की उन्नति तभी संभव हो सकती हैं
जब उसके निवासी स्वयं उन्नतिशील बने व्यक्ति किसी देश की अविभाज्य इकाई होते हैं बिना आत्म उन्नत के देश की उन्नति असंभव है संसार में उन महान आत्माओं की कमी नहीं है जिन्होंने स्वदेश के लिए असहनीय कष्टों का सामना किया भयंकर दुख सहे
और अंत में हंसते-हंसते अपने प्राण तक दे दिए भारतीय संविधान आंदोलन में लाखों देशभक्तों ने अपने प्राणों की बलि दी एवं अंग्रेजी शासन के घोर अत्याचार सहे देश के प्रति हमारा कर्तव्य बहुत अधिक होना चाहिए
वास्तव में वही देश उन्नति के शिकार पर पहुंचते हैं संसार में कुछ कर सकता है जहां के निवासी देश की उन्नति अपनी उन्नत समझे पश्चिम के देश आज इसलिए उन्नत के शिखर पर चढ़े हुए हैं क्योंकि वहां के लोग स्वदेश भक्त हैं वह स्वदेश सदैव अपने देश के हित के बारे में सोचते हैं
स्वदेश भक्त कैसे बनें?
आज हमारा कर्तव्य है कि हम सच्चे स्वदेश प्रेम का आदर्श स्थापित करें। तथा अनेक कठिनाइयों से जूझते हुए अपने देश की रक्षा करने हेतु लग जाए। हमारा एक ही संकल्प होना चाहिए कि जिएं तो देश के लिए मरे तो देश के लिए। क्योंकि-
जो भरा नहीं है भावों, से बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।।
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